हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , अंजुमन ए इमामिया बाल्तिस्तान के वरिष्ठ उपाध्यक्ष शेख ज़ाहिद हुसैन ज़ाहिदी के बयान कुछ इस प्रकार है
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللَّهِ جَمِيعًا وَلَا تَفَرَّقُوا.
अल्लाह तआला का हुक्म है कि सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मजबूती से पकड़े रहो और तफ़रक़ा में न पड़ो। यही आयत-ए-करीमा हमारे लिए वह अबदी मनशूर है जिस पर चलकर उम्मत-ए-मुसल्मा इज़्ज़त व सरबलंदी हासिल कर सकती है।
हफ्ते ए वहदत दरअसल इस बात की याददिहानी है कि हमारी असली पहचान रसूल ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत होना है। हमारी ताक़त हमारी तादाद में नहीं, बल्कि हमारे इत्तिहाद (एकता) में है। इस्तिक़बार व इस्तेमार ने हमेशा हमें आपसी इख़्तिलाफ़ात में उलझा कर कमज़ोर करने की कोशिश की, लेकिन अगर हम कुरान और सीरत-ए-मोहम्मद व आल-ए-मोहम्मद अलैहिस्सलाम से जुड़े रहें तो दुनिया की कोई ताक़त हमें शिकस्त नहीं दे सकती।
इमाम खुमैनी (रह) ने इसी हिकमत को मद्दे नज़र रखते हुए 12 से 17 रबी उल अव्वल के एयाम को "हफ्ते-ए-वहदत" करार दिया, ताकि शिया व सुन्नी सब मिलकर रसूल-ए-अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मिलाद-ए-बासअद को वहदत व अख़वत के साथ मना सकें और पूरी दुनिया को यह पैग़ाम दें कि मुसलमान एक हैं, उनका ख़ुदा एक है, उनका रसूल एक है और उनका कुरान एक है।
फिर आइए! हम सब अपनी सफ़ों में इत्तिहाद पैदा करें, फ़रक़ावारियत से ऊपर उठकर दुश्मन-ए-इस्लाम के मुकाबले में एक कतार में खड़े हों और अपने अमल से यह साबित करें कि वहदत हमारी ताक़त है और तफ़रक़ा हमारी कमज़ोरी।
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